CASE STUDY

Suhani Yadav

चौथी क्लास कि छात्रा सुहानी यादव मूलत: कानपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाली हैं। 31 जनवरी 2007 को जन्मी सुहानी का पहला कविता संकलन “चुनमुन” प्रकाशित हो चुका है।

“मुझको पंख लगा दो मम्मा, चिड़िया मुझे बना दो मम्मा” -सुहानी यादव

“मेरे पास है सुन्दर पैट, ये है प्यारी सी एक कैट ।

नाम रखा है इसका किट्टी, करती जो चूहों कि छुट्टी

बोली इसकी म्याऊं म्याऊं, दूध मिले तो मैं आ जाऊं

जंगल के राजा कि मौसी, नहीं समझना ऐसी वैसी”

कविता के नीचे नाम लिखा था सुहानी यादव। इस कविता कि रचियता कि उम्र महज़ नौ साल थी। यादव को आपसे परिचित कराया जाए ताकि हमारे बच्चों को भी एक नयी प्रेरणा मिले। चौथी क्लास कि छात्रा सुहानी यादव मूलत: कानपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाली हैं। 31 जनवरी 2007 को जन्मी सुहानी का पहला कविता संकलन “चुनमुन” प्रकाशित हो चुका है। जिसके लिए उन्हें प्रदेश के मुखिया श्री अखिलेश यादव, वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय गोपाल दास नीरज, श्री उदयप्रताप जी और माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश श्री राम नाईक जी सहित अनेक महानुभावों का आशीर्वाद मिल चुका है। कई अलग अलग मंचों पर उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। इसी 25 जुलाई 2016 को निवेदिता फाउंडेशन द्वारा सुहानी यादव को यंग एचिवर अवार्ड दिया गया। सुहानी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली द्वारा, बच्चों के लिए आयोजित की जाने वाली कार्यशाला में हिस्सा लिया और आकशवाणी तथा दूरदर्शन के कलाकार के तौर भी अपनी उपस्तिथि दर्ज़ कराई। सुहानी की माता जी श्रीमती रंजना यादव आकाशवाणी में बतौर उद्घोषिका काम करती हैं और पिता श्री बृजेन्द्र सिंह सरकारी नौकरी में है।

प्रश्न: आप कवितायेँ क्यों लिखती हैं ?

मुझे अच्छा लगता है राइमिंग करना।

प्रश्न: आपको कुछ याद है पहली कविता कब लिखी ?

मुझे तो याद नहीं है पर मम्मा (मम्मी) कहती हैं कि जब मैं बहुत छोटी थी तभी से राइमिंग वर्ड्स बनाने की कोशिश करती थी और कुछ भी उल्टा पुल्टा बोलती रहती थी। उस समय ब्रश करते हुए एक कविता बन गई थी, 

“ब्रश करो ब्रश करो जल्दी जल्दी ब्रश करो। 

लेफ्ट करो राइट करो सुबह शाम रोज़ करो।"

बाद में लेफ्ट राइट को बाएं और दाएं कर दिया था।

शायद यही मेरी पहली कविता थी।

प्रश्न: इतनी कम उम्र में आपकी किताब छपी और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने आपको सम्मानित किया कैसा लगा ?

बहुत अच्छा लगा। मुख्यमंत्री जी से मिलना और सम्मानित होना बहुत गर्व की बात है और इसके बारे में तो कभी सोचा भी नहीं था। इसलिए जब मेरा नाम लिया गया तो मेरे साथ साथ मेरे पूरे परिवार को बहुत खुशी हुई। मुख्यमंत्री जी के साथ डिम्पल मैम भी थीं। दोनों लोगों ने मुझे बहुत प्यार और आशीर्वाद दिया।

प्रश्न- आपको कविता लिखना किसने सिखाया ?

कई बार मैं और नानू (नाना जी) मिलकर शब्दों का खेल खेलते थे और एक जैसी साउन्ड के शब्द ढ़ूढ़ने की कोशिश करते थे। वो इसे तुकबंदी करना बोलते थे। शायद यहीं से कविता बननी शुरू हो गई होगी। हाँ, मैं एक दो लाइनें बनाकर छोड़ देती थी या भूल जाती थी मगर मम्मा इन्हें कहीं लिख लेती थीं या जब मैं बोल रही होती थी तभी रिकॉर्ड कर लेती थीं ।

प्रश्न-  इसका मतलब आपके नाना जी ने आपको कविताएं लिखना सिखाया। क्या वे भी कवि हैं ?

नहीं नानू लेखक या कवि नहीं थे बल्कि एक पुलिस ऑफ़ीसर थे। मगर वो बहुत ही क्रिएटिव थे। मुझे गाना सिखाते थे, पेंटिंग्स बनवाते थे। श्लोक और मंत्र याद करवाते थे। जब मैं ढ़ाई साल की थी तब उन्होंने मुझे हनुमान चालीसा याद कराई थी, जिसे मैंने अपने प्री स्कूल के फंक्शन में सुनाई। खूब सारी तालियाँ बजीं और मुझे प्राइज़ भी मिला।

प्रश्न- और क्या क्या शौक हैं आपके ?

मुझे डांस करना अच्छा लगता है, मैं कत्थक सीख रही हूँ । सिन्थसाइज़र बजाना अच्छा लगता है। सिंगिंग भी करती हूँ। कार्टून देखना भी बहुत पसंद है।

प्रश्न- . इन दिनों किसी नयी किताब पर काम कर रही है क्या ?

किताब तो नहीं पर कविताएं तो बनती रहती हैं। अख़बार और पत्रिकाओं में छपती भी हैं।

प्रश्न -- लिखने की वजह से पढ़ाई का नुक्सान होता है क्या?

बिल्कुल नहीं। मुझे पढ़ना अच्छा लगता है और मैथ्स मेरा फेवरिट सब्जेक्ट है। परीक्षा में हमेशा अच्छे मार्क्स लाती हूँ। रेग्युलर स्कूल जाती हूँ और टीचर्स का भी पूरा सपोर्ट मिलता है।

प्रश्न-- बड़े होकर क्या बनना चाहती हैं ?

बहुत सारी चीज़ें बनने का मन करता है, कभी सोचती हूँ कि एस्ट्रोनॉट बनूँगीं फिर लगता है कि डॉक्टर बनना ठीक रहेगा। लेकिन टीचर बनना ज़्यादा अच्छा है क्योंकि ये सारे तो टीचर से ही पढ़ कर बड़े होते हैं। मगर सब लोग कहते हैं कि कुछ भी बनने के लिए पढ़ना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए मैं मन लगाकर पढ़ाई करती हूँ,ख़ास कर मैथ्स और साइंस।

प्रश्न -  इतनी सी उम्र में सेलिब्रेटी बन गयीं हैं आप,क्लास में दोस्तों का व्यवहार कैसा रहता है ?

क्लास में बहुत सारे दोस्त हैं मेरे। स्कूल के बड़े भैया और दीदी भी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। सब मुझे बहुत प्यार करते हैं और हम साथ साथ खेलते हैं, झूला झूलते हैं और टिफिन भी शेयर करते हैं। हमारा कभी झगड़ा नहीं होता, हाँ कभी कभी कट्टी पट्टी हो जाती है पर थोड़ी देर बाद सब नॉर्मल हो जाता है।

प्रश्न- कौन सी शरारत करने में मज़ा आता है ?

मम्मा को परेशान करने में बड़ा मज़ा आता है, आवाज़ देकर छिप जाती हूँ फिर वो इधर उधर सब जगह ढ़ूढ़ती रहती हैं।

प्रश्न-  मम्मी से सबसे ज़्यादा किस बात पर डाँट पड़ती है ?

वैसे तो मैं अच्छी बच्ची हूँ। सबकी बात मानती हूँ, दूध भी पीती हूँ और लौकी भी खा लेती हूँ। लेकिन कभी कभी बालों में तेल नहीं लगाने और चोटी नहीं बांधने पर बहुत डाँट पड़ती है फिर मम्मा गुस्से में कहती हैं 'मैं तुम्हारे बाल कटवा दूँगी सुहानी'। पर मुझे तो बाल नहीं कटवाने, रेपन्ज़ल जितने बड़े करने हैं। इसलिए मैं चुपचाप उनकी बात मान लेती हूँ।

प्रश्न - आपको अपनी कौन - कौन सी कविताएं सबसे ज़्यादा पसंद हैं ?

मुझे मेरी सारी कविताएं पसंद हैं लेकिन सबसे ज़्यादा अच्छी लगती है माता सरस्वती की प्रार्थना, डॉ. दीदी,गौरैया, मैं चिड़िया और पेड़। ये कविताएं मुझे बहुत पसंद हैं और इन्हें सुनाना भी अच्छा लगता है।

प्रश्न- क्या कभी मंच पर भी कविताएं सुनायी हैं ?

स्कूल में तो अक्सर असेम्बली में सुनानी पड़ती हैं मगर पहली बार बड़े मंच पर अलीगढ़ में नुमाइश के कवि सम्मेलन में बहुत बड़े बड़े कवियों के बीच सुनायी थी। वहाँ मुझे भी वही सम्मान दिया गया जो सीनियर कवियों को दिया जाता है।

प्रश्न - आजकल बच्चे पत्र पत्रिकाएं व बाहर खेलकूद कम करके मोबाइल, टेलीविज़न और कम्यूटर के साथ ज़्यादा समय व्यतीत करते हैं। क्या आप भी ऐसा करती हैं ?

कम्प्यूटर, मोबाइल पर खेलना अच्छा लगता है मगर ज़्यादा देर नहीं। टी. वी. देखने का भी टाइम फ़िक्स्ड है। पापा कहते हैं कि आउटडोर गेम्स हमारी सेहत के लिए ज़रूरी हैं। इसलिए मैं सायकिल चलाती हूँ, झूले झूलती हूँ स्किपिंग और स्केट भी करती हूँ। कभी कभी टहलने भी जाती हूँ। मेरे यहाँ हर महीने कुछ बाल पत्रिकाएं आती हैं, वीकली न्यूज़पेपर भी आता है। इनमें तरह तरह की जानकारियों के साथ साथ मज़ेदार गेम्स भी होते हैं। कहानियाँ और कविताएं पढ़ना भी अच्छा लगता है।

प्रश्न- खाली समय में और क्या-क्या करती हैं ?

पौधों में पानी डालती हूँ, फूलों को देखती हूँ। मुझे पेट्स बहुत अच्छे लगते हैं मगर मेरे घर पर नहीं हैं तो मैंने सड़क पर रहने वाली गाय से दोस्ती कर ली। एक का नाम स्वीटी है और एक का लैला। ये नाम भी मैंने ही रखें हैं। एक कैट भी आती है घर पर, उसका नाम टियारा है,एक स्ट्रीट डॉग भी है उसका नाम है सैम। मैं रोज़ उन्हें रोटी देती हूँ और उनसे बातें करती हूँ। वो सब मेरी बातें,समझते हैं और फिर वो अपनी आवाज़ें निकाल कर मुझसे बात करने की कोशिश करते हैं।

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